Diya Jethwani

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लेखनी कहानी -19-Sep-2022.... आशियाना....

आज तक किया ही क्या हैं आपने मेरे लिए.... पापा....! 

मैं कुछ नहीं जानता... मुझे एक लाख रुपये चाहिए ... मतलब चाहिए...। वो भी कल के दिन में ही...। 

लेकिन बेटा.... मैं एक दिन में इतना रुपया लाऊंगा कहाँ से... अब इस घर ....इस आशियाने के अलावा कुछ नहीं हैं मेरे पास...। 

घर...आशियाना......इस टूटे फूटे... मकान को आप आशियाना कहते हो...। जगह जगह से तो दरारें पड़ रहीं हैं....। 

बेटा.... ये टूटा फूटा आशियाना बनाने में भी मेहनत लगतीं हैं... सबके नसीब में ये छत भी नहीं होती हैं...। दरारें घर में नहीं तेरे दिल में पड़ती जा रहीं हैं...। जो हैं.... जितना हैं.... उसमें खुश रहना सीख... हर वक़्त का रोना रोते रहने से कुछ नहीं होने वाला हैं...। अगर महलों के सपने हैं तो मेहनत भी उतनी करनी पड़ेगी... वो तो तुझसे होतीं नहीं...। हर बार बस इतने पैसे दो... इतने पैसे दो...। कब तक तेरी अय्याशियों पर मैं पैसे लुटाता रहूंगा...। 


दिन, महीने, साल.... ऐसे ही बितते गए.... रामलाल अपनी अंतिम घड़ियाँ गिन रहा था..। उसने एक दिन अपने बेटे को अपने पास बुलाया ओर कहा :- बेटा... मेरा अंतिम समय अब नजदीक हैं... जाने से पहले मैंने एक वसीयत बनाई थीं... वो तेरे हवाले करना चाहता हूँ.... लेकिन मेरी एक शर्त हैं...। तू वसीयत का पहले पहला पन्ना पड़ेगा....। उसके बाद जो तुझे सही लगे करना....। दूसरा पन्ना पढ़ने की जरूरत पड़े तभी पढ़ना वरना मत पढ़ना...। 

ठीक हैं.... ऐसा ही करूँगा...। 


कुछ दिनों में ही रामलाल परलोक को चले गए...। उनके गुजरते ही उनके बेटे ने झट से वसीयत निकाली ओर पढ़नी शुरू की...। 
पहले पन्ने पर लिखा था की..... इस घर के नीचे बहुत सारा धन दबा हुआ हैं... तुरंत निकाल लेना.... सब तेरे लिए हैं...। 

इतना पढ़ते ही मोहन खुशी से झूमने लगा ओर मन ही मन कहने लगा..... मैं तो खामखां ही पापा पर गुस्सा करता था... उन्होंने मेरा कितना सोच कर रखा था..। 
मोहन ने आव देखा ना ताव ओर झट से कुछ मजदूरों को बुलाकर खुदाई शुरू करवा दी...। 
पूरा घर धराशायी हो गया...। मजदूर खुदाई करते गए.... करते गए... लेकिन खजाने का कहीं कुछ अता- पता नहीं.... खोदते खोदते... कुंए जितना गहरा गड्ढा हो गया.... लेकिन एक फूटी कौड़ी भी नहीं निकली...। मोहन गुस्से से आगबबूला हो गया...। तभी उसे रामलाल की बात याद आई की जरूरत पड़े तो ही दूसरा पन्ना पढ़ना...। मोहन दौड़ता हुआ वसीयत लाया ओर पलटकर दूसरा पन्ना पढ़ा.. 
उस पर लिखा था....... तू हर बार मुझसे कहता था ना बेटा... आपने आज तक किया ही क्या हैं मेरे लिए... इस टूटे फुटे घर को आप घर कहते हो... लो आज उस घर को.....अपने आशियाने को भी मैने तुड़वा दिया.... अब अगर तुझमें हिम्मत हैं तो दोबारा बना कर दिखा...। मेरे जैसा ही सही.... बना सकता हैं तो बना ले बेटा....। 


दुसरा पन्ना पढ़ते ही मोहन ने अपने सिर पर हाथ रख लिए और रोने बिलखने लगा...। 
उसके पिता ने आज उसके सामने एक ऐसी सच्चाई रख ली थीं.... जिसका मोहन के पास कोई जवाब नहीं था...। 




ये बात मैने एक हास्य सम्मेलन में सुनी थीं.... हास्य कवि ने इसे मजाकिया अंदाज में एक कविता के रुप में सुनाया था... लेकिन मैनें इसे अपने शब्दों में एक विचारणीय कहानी का रुप देने की कोशिश की हैं...। 



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10 Comments

Bahut khoob 💐👍

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Pallavi

22-Sep-2022 09:29 PM

Nice

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Abeer

22-Sep-2022 10:52 AM

Nice post

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